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Chhatrapati Sambhaji Maharaj : शिवाजी महाराज के पुत्र और मराठा साम्राज्य के संस्थापक का इतिहास

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Chhatrapati Sambhaji Maharaj{ शंभू राजा} :  आज हम  छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी का जीवन परिचय और इतिहास बताने जा रहे हैं। मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक और शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र संभाजी भोंसले का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। यह पुणे के पास पुरंदर किले में हुआ था।

शंभू राजा का नाम पहले संभाजी था, लेकिन बाद में उन्हें छत्रपति शंभू राजा के रूप में जाना जाता है। छत्रपति संभाजी महाराज औरंगजेब के सबसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी थे। उसने अपने बाहुबल से आक्रमण करके मुग़ल साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण किलों बीजापुर और गोलकुण्डा पर कब्ज़ा कर लिया था। छत्रपति संभाजी महाराज ने अपनी वीरता से भारतीय इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराया। क्योंकि मुगल बादशाह औरंगजेब की लाख क्रूरताओं और कोशिशों के बावजूद भी संभाजी ने अपना धर्म नहीं बदला। अत: क्रूर औरंगजेब ने मात्र 31 वर्ष की आयु में संभाजी महाराज की हत्या कर दी। वे बचपन से ही मुगल साम्राज्य के विरोधी थे। इससे महाराजा का साम्राज्य मुगल, सिंधी, मैसूर और पुर्तगाल तक फैल गया।

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पदवी

छत्रपती, छांवा
जन्म स्थान (Place of Birth) पुरंदर किल्ला, पुणे जिल्हा, महाराष्ट्र
जन्म दिनांक (Date of Birth) 14 मे 1657
 आयु (Age) 32
 मां का नाम (Mother’s Name) सईबाई
 पिता का नाम (Father’s Name) छत्रपती शिवाजी महाराज
शाही परिवार भोसले
राज तिलक 20 जुलै 1680
राजधानी रायगड किल्ला
दूध देने वाली माँ धाराऊ पाटील गाडे
पत्नी (Wife Name) येसूबाई
बच्चे

(Children Name)

शाहू महाराज
मुद्रा होन, शिवराई
मृत्यू (Death) 11मार्च 1689

Chhatrapati Sambhaji Maharaj{ शंभू राजा}   का बचपन और शिक्षा

छत्रपति शंभू राजा का बचपन रायगड़ किले में हुआ था, जहां उनका पिता शिवाजी महाराज ने साम्राज्य की शिक्षा दी। छोटे से ही शंभू राजा ने अपने पिताजी के साथ मिलकर सम्राट बनने के लिए संकल्प किया था। उन्हें वीर और साहसी बनाने के लिए उनके पिताजी ने उन्हें विभिन्न युद्धकला और राजनीतिक विद्या की शिक्षा दी।

Chhatrapati Sambhaji Maharaj { शंभू राजा} के साम्राज्य में योगदान

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image source: webdunia marathi

१६७४ में छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद, उनका पुत्र छत्रपति शंभू राजा साम्राज्य की कठिनाईयों का सामना करना था। उन्होंने सम्राट बनने के बाद शिवाजी महाराज के अद्भूत उत्साह और योजना को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने पिताजी की विचारशीलता और सामर्थ्य को बचाने का कारगर तरीके से प्रदर्शन किया।

शंभू राजा ने मुघल साम्राज्य के खिलफ अपनी बड़ी शक्ति और साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने मुघल साम्राज्य के खिलफ कई युद्धों में भाग लिया और मुघल सेना को कई बार हराया। उनकी युद्ध रणनीति और योजनाओं ने मुघल साम्राज्य को कई बार चुनौती दी।  उन्होंने अपने युद्ध रणनीति में सतर्कता और समर्पण का प्रदर्शन किया और साम्राज्य को विकसित करने के लिए कई सुधार किए। उनकी साहसी नीतियां आज भी हमारे समाज में प्रेरणा का कारण बनी हैं।

Chhatrapati Sambhaji Maharaj{ शंभू राजा}का समाजसेवा में योगदान

शंभू राजा ने सिर्फ युद्ध और सेना की नहीं, बल्कि समाज की सेवा में भी बड़ा योगदान दिया। उन्होंने अपने साम्राज्य को अधिक समृद्धि और विकास की दिशा में बढ़ाने के लिए कई उपाय किए। उन्होंने कृषि, व्यापार, और शिक्षा को प्रोत्साहित किया और साम्राज्य के लोगों को समृद्धि में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया।

Chhatrapati Sambhaji Maharaj { शंभू राजा}का पुनर्निर्माण

शंभू राजा ने साम्राज्य को पुनर्निर्माण करने के लिए अपनी पूरी शक्ति और ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपने पिताजी के उत्तराधिकारी के रूप में अपनी भूमिका को बड़ी सावधानी से निभाई और साम्राज्य को मजबूत बनाया। उनके प्रबल नेतृत्व के कारण, मराठा साम्राज्य ने एक नया उत्थान देखा और विभिन्न क्षेत्रों में विकास किया।

Chhatrapati Sambhaji Maharaj{ शंभू राजा}  का अवसान

१६८९ में शंभू राजा का अवसान हो गया। उनकी शौर्य गाथाएं आज भी हमारे इतिहास में अद्वितीय हैं और उनका योगदान हमारे समाज के लिए अद्वितीय है। छत्रपति शंभू राजा का नाम भारतीय इतिहास में सतत जिन्दा रहेगा, और उनकी शौर्य गाथाएं हमें साहस और समर्पण की ओर प्रेरित करेंगी।

छत्रपति शंभू राजा ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने उन सभी को साहस और समर्पण से पार किया। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अद्वितीय है और हमें एक सशक्त और समृद्धि शील राष्ट्र की दिशा में प्रेरित करता है। छत्रपति शंभू राजा का इतिहास हमें यह सिखाता है कि साहस और समर्पण से ही समृद्धि और सम्मान प्राप्त हो सकता है।

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